हाइकु कविताओं में नया साल
-डा॰ जगदीश व्योम
लो फिर आ गया नया साल, निरन्तरता का सूचक है नया साल । कुछ भी स्थिर नहीं है समूची सृष्टि में । सब चल रहे हैं, और निरन्तर चलते जा रहे हैं, कहाँ जा रहे हैं... किसी को कुछ पता नहीं। हम धरती पर चल रहे हैं, धरती अपने रास्ते पर चल रही है, जाने कब से लगाये जा रही है सूर्य के आस-पास चक्कर पर चक्कर, सूर्य महाराज किसी और की परिक्रमा किये जा रहे हैं। धरती ने अपना एक चक्कर पूरा किया कि हम मग्न हो गए कि लो नया साल आ गया।
उधर काल पुरुष किसी अलौकिक ग्रंथ के पृष्ठ दर पृष्ठ खोलता चला जा रहा है। एक पन्ना खुलता है बहुत हौले से जिसमें अंकित है एक नवगीत पूरी तीन सौ पैंसठ पंक्तियों का जिसे उकेरा है किसी अज्ञात रचनाकार ने । काल पुरुष इसे पढ़कर पलट देता है एक और नया पन्ना, न जाने कब से चल रहा है यह क्रम -
लो चला वर्ष
नया पृष्ठ खोलेगा
काल पुरुष
-शिवजी श्रीवास्तव
सबकी निगाहें प्रतीक्षारत हैं कि-
चीर के धुंध
आएगा नव वर्ष
उल्लास भरा
-राजीव गोयल
पूरे हुये प्रतीक्षा के ये पल, आ गई उभर कर एक किरन और साथ में खींचकर ले आई नये साल का भारी भरकम ठेला-
साल का ठेला
खींचकर लाई है
नई किरन
-पूर्णिमा वर्मन
किरन केवल साल का ठेला ही खींचकर नहीं लायी है, वह नये संकल्पों की गठरी भी लायी है अपने साथ-
नव संकल्प
सूर्य किरन लाई
धरा मुस्कायी
-सीमा स्मृति
संकल्पों को पूरा करना है तो सोते से जागना भी होगा तभी संकल्प पूरे हो सकेंगे। धरती ने नये साल के रूप में फिर से अँगड़ाई ले ली है, और अब बारी हमारी है कि हम भी आलस को त्याग कर सजग हो जायें अपने कर्तव्य पालन के लिये-
नये साल ने
ले ली है अँगड़ाई
कली मुस्कायी
-ऋता शेखर मधु
और जब-जब धरती अँगड़ाई लेती है तब-तब नई सृष्टि का संचार होता है, आशाओं के अंकुर फूट पड़ते हैं-
अंकुर फूटा
नई आशाएँ लिये
शुभ स्वागत
-भावना सक्सेना
इन नवांकुरों का स्वागत करना है, इन्हें पल्लवित होने के लिए स्वस्थ परिवेश देना है तभी ये नवांकुर पल्लवित और पुष्पित हो सकेंगे। नित नवीनता के प्रति आकर्षण हमारी जन्मजात विशेषता है। कविता में भी नवीनता खोजने की ललक हमेशा से रही है, नयी काव्य विधाओं के रूप में, छन्द के रूप में, कथ्य के रूप में। इसी खोज का सुपरिणाम है दुनिया की सबसे छोटी कविता- हाइकु । हाइकु कविताओं में नये वर्ष की चर्चा होती रही है। इस नव वर्ष के बहाने भी कवि छन्दों में कुछ नया-सा, कुछ मीठा-सा रस घोल सकें ऐसी ही कामना अपने एक हाइकु में शिवजी श्रीवास्तव करते हुए कहते हैं-
नया बरस
छन्दों में घोलें कवि
मीठा रस
-शिवजी श्रीवास्तव
नये वर्ष में कुछ नया हो जो प्रासंगिक हो, ऐसे विचार जो उपयोगी नहीं रह गये हों उन्हें छोड़ देने में ही भलाई है-
नूतन वर्ष
तज जीर्ण विचार
अबकी बार
-ज्योतिर्मयी पन्त
भारतीय संस्कृति की एक विशेषता यह भी है कि यहाँ केवल अपने सुख के लिये प्रार्थना नहीं की जाती है यहाँ तो सबके सुखी जीवन के लिये दुआ माँगी जाती है-
नवीन वर्ष
सबके जीवन में
लाए उत्कर्ष
-प्रदीप कुमार दाश
नये वर्ष का मानवीकरण भी खूब किया है कवियों ने, कभी उसे राजा कहा है तो कभी सन्त और कभी ऐसा पाहुन जो बार-बार आता रहता है-
पाहुन बन
घूम-घूम के आया
नवल वर्ष
-रमा द्विवेदी
कहते हैं कि वक्त न तो छोटा होता है और न बड़ा, हम अपनी मनःस्थिति के अनुरूप उसकी अनुभूति करते हैं, दुखी व्यक्ति के लिए साल इतना लम्बा हो जाता है कि काटे नहीं कटता और जिनके जीवन में सुख है उनके लिए साल के तीन सौं पैंसठ दिन कब फिसल जाते हैं पता ही नहीं चलता एकदम हथेली में थामे हुए रेत के समान-
फिसल गया
वक्त की हथेली से
रेत-सा साल
-नमिता राकेश
कभी लगता है कि नया साल चुपचाप नहीं आता उसके आने पर शोर होता है ठीक किसी पहाड़ी झरने के समान-
नव वर्ष भी
झरने-सा उतरा
शोर मचाता
-डॉ. सरस्वती माथुर
नये वर्ष में जन-जन के मन में नये-नये सपने जन्म लेते हैं-
स्वप्न धवल
ख्यालों-मुंडेरों सजे
वर्ष नवल
-विभा श्रीवास्तव
नववर्ष का पहला दिन किसी पवित्र ग्रंथ के पहले पृष्ठ के समान लगता है, निर्मल और पावन, हरदीप कौर सन्धु इस प्रथम पृष्ठ को धीरे से खोलने का आह्वान करते हुए कहती हैं-
धीरे से खोलें
आओ नव वर्ष का
प्रथम पृष्ठ
-डॉ. हरदीप कौर सन्धु
नववर्ष के पृष्ठ को खोलने के बाद संकल्प लेना है कुछ वादों का कुछ इरादों का-
कुछ वादे हैं
बहुत इरादे हैं
नव वर्ष में
-प्रियंका गुप्ता
इन वादों और इरादों को जब हम पूरा कर लेते हैं तब खिलती है इरादों की धूप और फिर नये साल के रूप में उम्मीदों की यही धूप कुछ और संकल्पों की चाह लिये आ जाती है-
फिर से खिली
उम्मीदों वाली धूप
नए साल की
- जेन्नी शबनम
हर एक नया साल एक न एक दिन पुराना हो जाता है और उसके पास कुछ शेष बचता है तो वह है तमाम पुरानी यादें-
पुरानी यादें
पोटली में बांधता
साल पुराना
-अंजली शर्मा
ये पुरानी यादें कभी-कभी ऐसी विभीषिकाओं और आपदाओं को समेटे हुए होती हैं कि दिन जख्मी लगने लगते हैं और तारीखें लाल-
जख्मी से दिन
तारीखें हुयी लाल
साल का हाल
-सविता अशोक अग्रवाल
दुख और आपदाओं को सौगात में देकर जाने वाला साल नये वर्ष में कुछ अच्छा होने का वादा करके विदा होता है शायद यह दुख और त्रासदी उसे भी अच्छी नहीं लगती होगी तभी तो पुराने साल की रात दूब पर ओस के रूप में अपने आँसू टपका कर यही संकेत करती है पूर्णिमा वर्मन के इस हाइकु में इसे महसूस किया जा सकता है-
पुराना साल
रात ने किया विदा
दूब पे अश्रु
-पूर्णिमा वर्मन
कभी-कभी लगता है कि साल किसी बटोही के समान है जो एक पड़ाव पर रुकता है और जाते समय अपनी यादों की पोटली वहीं छोड़ कर चल देता है, यह बात अलग है कि यादों की ये पोटली सभी को अपनी-सी ही लगती है-
बटोही साल
छोड़ गया पोटली
यादों से भरी
-सुनीता अग्रवाल
भले ही जाने वाला हर साल दुख और संत्रास की पोटलियाँ छोड़ता रहता है फिर भी हर किसी को किसी अचीन्हें उल्लास की उम्मीद बनी ही रहती है, यही लगता रहता है दुख और त्रासदी के धुंध को चीर कर नव वर्ष की किरणें सबके जीवन में उल्लास भर देंगीं-
चीर के धुंध
आयेगा नव वर्ष
उल्लास भरा
-राजीव गोयल
नये साल के हाथों में बारह महीनों का बूढ़ा कलेण्डर सौंप कर पुराना साल विदा हो जाता है, उमेश मौर्य के हाइकु में यही भाव देखा जा सकता है-
सौंपता चला
बूढ़ा सा कलेण्डर
नूतन वर्ष
-उमेश मौर्य
एक पीढ़ी अपनी विरासत दूसरी पीढ़ी को सौंप कर विदा लेती है इसी तरह पुराना वर्ष भी अपनी खट्टी-मीठी विरासत को आने वाले नये साल को सौंप कर स्वयं अतीत बन जाता है, योगेन्द्र वर्मा के इस हाइकु में यही संदेश है-
साल पुराना
सौंपता विरासत
नये साल को
-योगेन्द्र वर्मा
वक्त का डाकिया मधु पत्र के रूप में नये वर्ष को लेकर आता है तो चारो ओर खुशी छा जाती है-
काल डाकिया
ले आया मधु पत्र
नये वर्ष का
-शिवजी श्रीवास्तव
आने वाले वर्ष के दिन, महीने कैसे होंगे इसका ताना-बाना पहले से ही काल रूपी जुलाहा बुनकर तैयार कर लेता है-
काल जुलाहा
बुनता ताना-बाना
नवल वर्ष
-ज्योतिर्मयी पन्त
वक्त के जुलाहे ने आने वाले वर्ष के ताने-बाने में क्या बुना है यह तो किसी को नहीं मालूम परन्तु उम्मीद यही रहती है कि सब कुछ अच्छा रहे, हमारा देश खुशहाल रहे, जन-जीवन सुखी रहे, चारो ओर सुख और शांति बनी रहे-
नूतन वर्ष
खुशहाल वतन
सौगात मिले
-शांति पुरोहित
संघर्ष हमारे जीवन का अभिन्न अंग है, बिना संघर्ष के आगे बढ़ना असम्भव है, नये साल में हर संघर्ष पर हमारी विजय होती रहे, सबके लिये ऐसी ही कामना करना एक रचनाकार का धर्म बन जाता है, अरुण आशरी के एक हाइकु में इसे देखा जा सकता है-
नूतन वर्ष
जीतें हर संघर्ष
मिले उत्कर्ष
-अरुण आशरी
सपने देखना और सपनों को साकार करने का प्रयास करना ही जीवन का दूसरा नाम है, नया वर्ष भी जन-जन के मन में अनगिनत सपनों का संचार करता है, सबको सिंदूरी सपने बाँट कर उन्हें साकार करने की मूक प्रेरणा भी देता है, त्रिलोक सिंह ठकुरेला के इस हाइकु में यही भाव दृष्टव्य है-
नये वर्ष में
बाँट दिये सबको
सिन्दूरी स्वप्न
-त्रिलोक सिंह ठकुरेला
दुख के बाद सुख और सुख के बाद दुख का क्रम चलता ही रहता है, बीते साल में होने वाली घटनाओं से दुखी होकर रात दिन रोते रहने से अच्छा है कि खुशियों की परिकल्पना करते हुये जीवन में हर्ष और उल्लास की आशा रखनी चाहिये, नये साल में निश्चय ही सब कुछ अच्छा ही अच्छा होगा हमें यही सकारात्मक सोच रखनी चाहिये-
गम न कर
गुज़रा बीता साल
आएगी ख़ुशी
-गुंजन गर्ग अग्रवाल
और दुख, कुण्ठा, संत्रास का यह कुहासा जो जन-जन के मन पर अप्रत्याशित रूप से छाया हुआ है, वह नये साल में दूर होगा और नये साल के नये सूर्य की नयी किरणें इस कुहासे को चीर कर सुख और शांति की नयी और ताजी धूप जन-जन को समान रूप से बाँट कर इस कुहासे को दूर कर सकेंगी यही कामना है-
कुछ कम हो
शायद ये कुहासा
यही प्रत्याशा
-डा॰ जगदीश व्योम
जापान के अठारहवीं शताब्दी के अद्भुत हाइकु कवि कोबायाशी इस्सा के हाइकु जापान के साहित्यिक इतिहास मे कुछ वैसा ही मुकाम रखते हैं जैसा हिंदुस्तान मे कबीर की साखियों का है। हाइकु के चार स्तंभों मे ’बाशो’, ’बुसोन’ और ’शिकि’ के साथ ही उनका नाम भी शामिल है। अपने जीवन काल मे कोई 20000 हाइकु लिखने वाले इस्सा की लोकप्रियता वक्त से संग बढ़ती ही गयी है। कोबायाशी इस्सा (1763-1827) का 64 साल का जीवन लगातार उथलपुथल से भरा रहा। नये साल पर इस्सा के कुछ हाइकु उनके जीवन की इसी उथल-पुथल का आईना हैं-
साल का पहला सपना
मेरे गाँव का घर
आँसुओं से धुला
-इस्सा
वक्त के आगे मानव जीवन असहाय है, इस्सा बीते वर्ष की अनुभूति को एक हाइकु में व्यक्त करते हुए कहते हैं-
लकड़ी उतराती पानी में
कभी इधर कभी उधर
खतम होता है साल
-इस्सा
गढ़ रही है
साल का पहला आकाश
चाय की भाप
-इस्सा
चाय यहाँ नये साल के उत्सव का भी एक पहलू है। एक मजेदार बात यह भी है कि कवि के तखल्लुस ’इस्सा’ का जापानी मतलब भी चाय-का-कप जैसा कुछ होता है।
शहरी गरीब इलाकों मे रहने की जगह की तंगी अपने हिस्से की जमीन ही नही आसमान को भी छोटा कर देती है, इस्सा को इसका अच्छा तजुर्बा रहा था-
बाड़ से बँधा
कुल तीन हाथ चौड़ा
साल का पहला आकाश
-इस्सा
साल के पहले दिन सूर्य को देखकर इस्सा कहते हैं-
गोदाम के पिछवाड़े
तिरछा चमकता है
साल का पहला सूरज
-इस्सा
अपने घर की दुर्दशा के बहाने इस्सा अपनी आर्थिक खस्ताहाली पर भी व्यंग्य करने से नहीं चूकते हैं-
थोक मे अभिनंदन करता
साल की पहली बारिश का
टपकता हुआ घर
-इस्सा
इस्सा के तीखे हास्यबोध और जिंदगी के प्रति फ़क्कडपन का बेहतरीन उदाहरण है, जहाँ टूटे घर में भी वे ऐसी सकारात्मकता खोज लेते हैं कि जिंदगी से कोई शिकायत न हो-
दीवार मे छेद
कितना सुंदर तो है
मेरे साल का पहला आकाश
-इस्सा
-डा० जगदीश व्योम
बी-12ए / 58ए
धवलगिरि, सेक्टर-34
नोएडा - 201301
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